Thursday, April 15, 2010

आस्था का आई पी एल

जकल क्रिकेट के आई पी एल का बड़ा शोर है। आई पी एल यानि इंडियन प्रीमीयर लीग। करोड़ों के दांव लगे हैं .सचिन, धोनी, युवराज जैसे धुरंधर खिलाडियों की अगुआई में देश विदेश के सैकड़ों खिलाडियों को मनचाही कीमत देकर खरीदा गया है। शाहरुख़, प्रीती, शिल्पा जैसे, बॉलीवुड के मसालेदार तड़के और छोटे-२ कपड़ों में नाचती चीयर गर्ल्स के साथ ललित मोदी ने क्रिकेट की ऐसी इंडियन करी तैयार की है, जिसमें खाने वालों (हम और आप) को भले ही स्वाद न आये मगर खिलाने वालों के वारे न्यारे हो रहे हैं। अरबों में टीवी प्रसारण राइट्स बेचे गए हैं। टीवी वालें भी खूब कमा रहे हैं। छ: गेंदों के ओवर में से सिर्फ पांच गेंदों कामैच ही आप तक पहुँच रहा है, छठी गेंद वक्त तो विज्ञापन की भेंट चढ़ जाता है। सब चलता है, अगर फ्रांसिस एडवर्ड स्मेडली के शब्दों को थोडा बदल दें तो यूँ कह
सकते हैं " all is fare in fun and bazaar"।
मगर क्रिकेट के इस आई पी एल के साथ ही एक और आई पी एल इस वक़्त भारत में हो रहा है। जब बाज़ार के सारे तिकड़म भिड़ाने के बाद, कुछ हज़ार लोगों की भीड़ ही जुटा सकने वाले इस रंगीन समारोह को कुछ लाख लोग ही टीवी पर देख रहे हों, उसी समय इस महान समारोह के लिए बिना किसी प्रायोजक के, बिना किसी प्रचार के करोड़ों लोग एक साथ एक समय इकठ्ठा हो जाते हैं। क्या वज़ह है? जनाब मैं कुम्भ की बात कर रहा हूँ । कुम्भ का मेला परसों ही अपने समापन पर पहुंचा है।कितनी अजीब बात है सैकड़ों वर्षों से लोग इस मेले में जुटते हैं, किस लिए? सिर्फ स्नान के लिए। ये क्या है? ये सिर्फ आस्था है, जो इतने लोगों का विश्वास, इस मेले में बनाये हुए है। इतने लोगों को भीड़ जुटाने के लिए ना ही तो टीवी पर विज्ञापन दिए जाते हैं, न ही फ़िल्मी सितारों को बुलाया जाता है । मगर फिर भी लोगों का सैलाब उमड़ पड़ता है। ये आस्था का आई पी एल है।आस्था ही तो है जो पत्थर को भी भगवान बना देती है। ईश्वर दिखाई नहीं देता मगर हमारी आस्था उसमें बनी हुई है, और जब तक मानव की ईश्वर में आस्था है ये दुनिया यूँ ही चलती रहेगी बेलौस.....हम बेफिक्र जी सकते हैं सिर्फ उसमें आस्था बनाए रखें..
शुभ रात्रि
गौतम









1 comment:

  1. spell correctly to 'FARE' as 'FAIR'.
    your msg is gr8 2 c and i apppreciate it.
    kaap ur skill of writing as well.
    MAY GOD BLESS YOU...
    RAVI PRAKASH.

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