आज सचिन तेंदुलकर का जन्मदिन है, सचिन जो किसी परिचय के मोहताज नहीं। अपने क्षेत्र में अनगिनत उपलब्धियों को समेटे सचिन, अपने प्रशंसको को इन्सान के रूप में भगवान् से नज़र आते हैं। मैं भी उन अनगिन सचिन प्रशंसको में से एक हूँ। मेरा कथन शायद आपको अतिशयोक्ति लगे, लेकिन आप ही सोचिये जब इस सैंतीस वर्षीय युवक के सामने सुनील गावस्कर जैसा व्यक्ति जो खुद ही क्रिकेट के देवता कहे जाते हैं, नतमस्तक हो जाएँ उनका स्वागत उनके पैरों में लेटकर करें, तो कुछ तो ख़ास होगा ऐसे इंसान में। खैर सचिन ने जो क्रिकेट में प्राप्त किया वो अलग बात है, मगर उस सबको पा लेने के बाद सचिन जिस तरह के इंसान बनकर उभरे हैं, उसने उन्हें वास्तव में अपनी श्रेणी का अलग व्यक्तित्व प्रदान किया है। जिस सादगी के साथ सचिन व्यवहार करते हैं, वो किसी को भी सचिन फैन बना सकता है।
सचिन तुम्हें सलाम और ढेरों बधाईयाँ ।
आज एक कविता के साथ आपसे विदा लेता हूँ, जो काफी पहले लिखी थी अपने अनुज मुकेश के लिए...
है पड़ाव ये मंजिल नहीं
अवलोकन कर इस से कुछ हासिल नहीं
लक्षित पथ पर छाँव मिले, धूप मिले
गहन तम हो या फिर दीप जले
मंजिल से पहले रुकना नहीं
मंजिल से पहले थकना नहीं
लक्ष्य जब तू पा जायेगा
गहन तम हो या फिर दीप जले
मंजिल से पहले रुकना नहीं
मंजिल से पहले थकना नहीं
लक्ष्य जब तू पा जायेगा
हर सुख स्वत: मिल जायेगा
स्वेद स्वर्ण बन दमकेगा
सुबह का सूरज फिर चमकेगा
छोड़ पड़ाव इस से कुछ हासिल नहीं।
शुभरात्रि ।स्वेद स्वर्ण बन दमकेगा
सुबह का सूरज फिर चमकेगा
छोड़ पड़ाव इस से कुछ हासिल नहीं।
...............................................................गौतम