देखिये मैंने कहा था न कि मैं व्यस्त हूँ । ३ अप्रैल के बाद आज लिखने का समय निकाल पाया हूँ। लेकिन जब सोचता हूँ इतने दिनों में मैनें क्या विशेष किया तो जवाब मिलता है "कुछ ख़ास नहीं " । रोज़मर्रा के काम के अलावा कुछ भी तो नहीं, फिर कैसी व्यस्तता ?
आप भी मेरी तरह ही हैं जनाब मैं खूब जानता हूँ । आपने पिछले हफ्ते क्या ख़ास किया इसकी एक सूची बनाकर देखिये आप को पता चल जायेगा की आप निट्ठलों से कुछ ही बेहतर हैं।
पहले मैं पत्र लिखने का बहुत शौक़ीन था। हर हफ्ते दो चार ख़त लिख ही दिया करता था। मगर अब तो मानो वक़्त ही नहीं मिलता। मेरे पास आज भी ढेरों पत्र पड़े हैं मेरे मित्रों और रिश्तेदारों के, आज भी कभी-२ उनको पढता हूँ, अच्छा लगता है। जब से मोबाइल आया है दूरियां मानो बढ़ गई हैं , जी आपने ठीक पढ़ा , दूरियां बढ़ी हैं, घटी नहीं। यकीं न हो तो अपने अतीत को थोडा सा टटोल कर देखिये । जिन लोगों को आप बड़े चाव से, बहुत ही दुलार से पत्र लिखा करते थे। उनके हाल मालूम करने के लिए बेचैन रहते थे, दिनों-हफ़्तों इंतज़ार करते थे उनके पत्रों का। आज आपके हाथ में हर वक़्त मोबाइल है , मगर क्या आप उन्हें एक काल कर उनकी खैर खबर लेते हैं। शायद आप उनके फ़ोन का इंतज़ार भी नहीं करते क्यूंकि आपके पास वक़्त ही कहाँ है। हम जाने-अनजाने एक दूसरे से दूर होते जा रहे हैं । हमेशा यही सोचकर टाल दिया करते हैं कि कल फुर्सत से बात करेंगे । मगर वो फुर्सत न जाने कब होगी। ।
मिर्ज़ा ग़ालिब भी शायद फुर्सत को बहुत मिस किया करते थे तभी तो उन्होंने लिखा है
"जी ढूंढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात दिन
बैठे रहें तस्सवुर-ए-जानाँ किए हुए॥
......... मैं फुर्सत को तलाशने की कोशिश करता हूँ और आप भी कीजिएगा।
शुभरात्रि
गौतम
आप भी मेरी तरह ही हैं जनाब मैं खूब जानता हूँ । आपने पिछले हफ्ते क्या ख़ास किया इसकी एक सूची बनाकर देखिये आप को पता चल जायेगा की आप निट्ठलों से कुछ ही बेहतर हैं।
पहले मैं पत्र लिखने का बहुत शौक़ीन था। हर हफ्ते दो चार ख़त लिख ही दिया करता था। मगर अब तो मानो वक़्त ही नहीं मिलता। मेरे पास आज भी ढेरों पत्र पड़े हैं मेरे मित्रों और रिश्तेदारों के, आज भी कभी-२ उनको पढता हूँ, अच्छा लगता है। जब से मोबाइल आया है दूरियां मानो बढ़ गई हैं , जी आपने ठीक पढ़ा , दूरियां बढ़ी हैं, घटी नहीं। यकीं न हो तो अपने अतीत को थोडा सा टटोल कर देखिये । जिन लोगों को आप बड़े चाव से, बहुत ही दुलार से पत्र लिखा करते थे। उनके हाल मालूम करने के लिए बेचैन रहते थे, दिनों-हफ़्तों इंतज़ार करते थे उनके पत्रों का। आज आपके हाथ में हर वक़्त मोबाइल है , मगर क्या आप उन्हें एक काल कर उनकी खैर खबर लेते हैं। शायद आप उनके फ़ोन का इंतज़ार भी नहीं करते क्यूंकि आपके पास वक़्त ही कहाँ है। हम जाने-अनजाने एक दूसरे से दूर होते जा रहे हैं । हमेशा यही सोचकर टाल दिया करते हैं कि कल फुर्सत से बात करेंगे । मगर वो फुर्सत न जाने कब होगी। ।
मिर्ज़ा ग़ालिब भी शायद फुर्सत को बहुत मिस किया करते थे तभी तो उन्होंने लिखा है
"जी ढूंढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात दिन
बैठे रहें तस्सवुर-ए-जानाँ किए हुए॥
......... मैं फुर्सत को तलाशने की कोशिश करता हूँ और आप भी कीजिएगा।
शुभरात्रि
गौतम
GAUTAM BHAI....YE TO APNA SA HI NAZAR AATA HAI.
ReplyDeleteAAPKA EK NAYA CHEHRADEKHKAR BAHUT KHUSH HOON AUR AAPKE ANDER BAITHE KALAKAR KO SALAAM KARTA HOON.
LAGTA HAI APNI DIARY BHI AAPKO HI DE DOON
ALL THE BESTS FOR THE REST
maskhara kuch kcuh mera he roop hai mujhe yaad hai jab iss kavita ne roop liya tha...all the best
ReplyDelete