Saturday, April 3, 2010

पहली मुलाक़ात

मेरी प्रथम कविता के माध्यम से शायद आप मुझे कुछ जान सके हों... शायद नहीं जान पाएंगे। हाँ, इतना वक़्त किसके पास है कि वो किसी के बारे में, कुछ देर कहीं, बैठ कभी, ये सोच सके कि ये इंसान जिससे वो कुछ क्षण पहले ही मिले हैं, माना सिर्फ कुछ देर के लिए ही सही, कौन है? कैसा है? इंसान जैसा सिर्फ दिखता है या वास्तव में ही इंसान है। हमारे पास फुर्सत ही नहीं है, सच मानिए, अगर हम चन्द लम्हें कहीं से बचा सकते दूसरों के लिए तो यकीन जानिये ये दुनिया इतनी डरी सहमी न होती .... जितनी कि आज हो गई है।
मित्रों मैं सिर्फ आपको नहीं कोस रहा हूँ कि आप मेरे बारे में जानने को क्यूँ उत्सुक नहीं हैं। मैं खुद भी इसी कश्ती का सवार हूँ, तथाकथित तौर पर व्यस्त हूँ, क्यूँ हूँ पता नहीं, ....पर हूँ ज़रूर। पता नहीं कैसे ब्लॉग लिखने का मन हो आया सो लिखने बैठ गया, और आज की इस तकनीक को साधुवाद जिसने लोगों से जुड़ने का अवसर प्रदान किया।
मैंने कोशिश की है कि आप मेरे नाम से मुझे जान सके.... गौतम मेरा नाम है, साधुराम मेरे पिताजी का, और मैं वास्तव में उनका प्रिय रहा, सो मैं हो गया .... गौतम साधुराम प्रिय... आज इतना ही ...
शुभ रात्रि , नमस्कार
गौतम

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