Sunday, April 3, 2011

जियो हिंदुस्तान ...

अप्रैल २०११ का दिन इतिहास में दर्ज हो चुका है। धोनी के जियालों ने वही करिश्मा एक बार फिर कर दिखाया है जो कपिल के जाबांजों ने २५ जून १९८३ को किया था। भारत वर्ल्ड कप जीत कर विश्व विजेता बन चुका है, इस अवसर पर शुभकामनायें, दुआएं, बधाइयों और जश्न का दौर जारी है। राजा हो या रंक, नेता हो या अभिनेता हर कोई ख़ुशी से झूम रहा है, सडकों पर नाच गा रहा है। ये क्रिकेट का जुनून है, जो अपने रंजो ग़म को भुलाकर सबको एक कर देता है। और हमारे खिलाड़ी इसीलिए बधाई के पात्र हैं की इन्होने हमें और हमारे जीवन को गर्व करने का एक और लम्हा प्रदान किया है। हम उनको सलाम करते हैं।

जब स्वप्न यथार्थ में परिवर्तित होते हैं तो ईश्वर की भी आँख से आंसू निकल पड़ते हैं। एक ऐसा ही क्षण हमें देखने को मिला जब क्रिकेट के भगवन कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर को उनके साथी खिलाड़ी जीत के बाद कन्धों पर उठाये मैदान के चक्कर लगा रहे थे तो उनकी आँख से बरबस ही आंसू छलक पड़े। २१ वर्षों से यही स्वप्न लिए सचिन तेंदुलकर खेल रहे थे की वो भी विश्व विजेता टीम का हिस्सा बन सके। और टीम का हर सदस्य मानो इस बार जिद पे अड़ा था कि सचिन को वर्ल्ड चैम्पियन बनाना है। हरभजन को जब ये पूछा गया कि आप सब सचिन को कंधो पर उठाये जश्न मना रहे हैं कैसा महसूस करते हैं तो उनका जवाब भाव विह्वल करने वाला था कि सचिन २१ वर्षों से पूरे देश की आशाओं का बोझ अकेले उठा रहे हैं तो इस वक्त उनका बोझ उठाना उनके लिए गौरव कि बात है। युव राज, सहवाग, गंभीर या धोनी सभी ने एक सुर में सचिन को ये जीत समर्पित की है। जिस टीम में समर्पण और एकता कि ऐसी भावना हो उसे भला कौन हरा सकता है। धोनी एंड कंपनी मुबारक हो।

आज जब हर कोई ख़ुशी से सराबोर है तो दिल से बरबस एक ही आवाज़ निकलती है जियो हिंदुस्तान....


नमस्कार, शुभरात्रि

गौतम

Monday, September 27, 2010

प्रतीक्षा ....


इस तस्वीर को देख कर आपके मन में कुछ न कुछ अवश्य उभर आएगा... जो भी विचार आपके मन में उत्पन्न हो रहे हैं...यहाँ शब्दों के रूप में आप उकेर सकते हैं....
(चित्र में स्व० श्री राम सिंह, ग्राम पिलखनी, सहारनपुर, उ०प्र० )

Wednesday, September 15, 2010

बारिश के बहाने

इस बार बारिश खूब जमकर बरस रही हैइसी बहाने मौसम विभाग को अपनी पुरानी धूल खा रही फाइलों को झाड़ने का मौका मिल गयाकर्मचारी हर रोज़ ये तय करने में व्यस्त हैं कि आज की बरसात के बाद कौन से साल का रिकार्ड टूटा। चलो इसी बहाने इनको कोई काम मिल गया
बारिश हो रही है तो सड़कें, जिनमे सिर्फ गड्ढे हुआ करते थे अब तालाब की शक्ल इख्तियार कर रही हैंठेकेदार हिसाब लगाने में व्यस्त हैं अब ठेकें छूटेंगे तो कितनी कमाई होगीउम्मीद बढाती बारिश के बहाने ठेकेदारों को बड़ी जेबों वाली पतलूने सिलवाने का मौका मिल गया और रेडीमेड के दौर में दर्जियों को कुछ काम
बारिश खूब है तो बाढ़ तो होगी ही, बाढ़ होगी तो बाढ़ पीड़ित भी होंगे और बाढ़ पीड़ित होंगे तो उनके लिए सरकारी और गैर सरकारी फंड भी रिलीज़ होंगे मतलब कमाई होगीतो सरकारी और बहुत सारे गैर सरकारी बंधुओं की उम्मीद को पंख लग गए इस बारिश के बहाने
आपने भी महसूस किया होगा पिछले कई सालों से बारिश को लेकर कोई बढ़िया सा रोमांटिक गाना सुनने को नहीं मिला हैबेचारे गीतकार भी क्या करें बारिश होती ही नहीं तो आजकल के प्रेमी युगलों के हृदयों में वो काली घटा के छाने से उठने वाली हूक ही गायब है, वो उस अहसास से ही नावाकिफ हैं इसलियें उन् गानों का मार्केट भी नहीं हैंदादी-नानी उस ज़माने के किस्से बड़े मज़े लेकर सुनाती हैं जब राजकपूर और नर्गिस का गाना "बरसात में हम से मिले तुम सजन तुम से मिले हम, बरसात में...तक धिना धिन...." उनके अहसासों को हवा दिया करता थाऔर आंटियां भी कहाँ पीछे हैं वो भी तो याद करती हैं जब जया भादुरी और शर्मीला टगोर का गाना " अब के सजन सावन में आग लगेगी की बदन में..." कैसे उनके दिलों को झकझोर दिया करता थाऔर अंकल आप भी तो याद करते हैं ना किशोर दा का वो गाना " रिमझिम गिरे सावन सुलग सुलग जाए मन...." आज भी मन को भिगो देता हैऔर उस पर अमिताभ बच्चन और मौसमी चटर्जी के मरीन ड्राइव पर भीगते हुए चित्र मदहोश कर देते थेमगर अब ना ही तो अब "काली घटा छाती है ना ही प्रेम रुत आती है ..." , ना ही "भीगी भीगी रातोंमें रिमझिम के गीत सावन गाये" और ही सावन आये झूम केऔर जब ये सब नहीं है तो आप रपटेंगे कहाँ और गायेंगे कैसे कि "आज रपट जाएँ तो हमें उठइयो..." । मगर इस बार बारिश खूब है तो इसी बहाने फिल्म वालों को भी बहाना मिल जायेगा अपनी हीरोइन को भिगोने का और दर्शकों को किसी आइटम नंबर के साथ कोई बढ़िया सा बरसाती रोमांटिक गाना मिल ही जायेगा
बारिश के बहाने और भी कुछ होगा जिसका अहसास शायद आप और हमें हो, इस बारिश में यमुना खूब भर कर बह रही है उन्हें भी अपने पुराने दिन याद रहें होंगे और वो शायद मन ही मन खुश होगी उन लोगों भागते देख कर जो उसकी छाती पर ज़बरदस्ती कब्ज़ा जमाये बैठे हैंताज महल के बारे में सिर्फ सुनते थे कि यमुना के किनारे है मगर यमुना उस से बहुत दूर नज़र आती थी अब ताज को भी अपने गुज़ारे ज़माने की याद ताज़ा हो गई होगी और ज़न्नत में मुमताज़ और शाहजहाँ की रूह को भी सुकून मिला होगा अपने ताज को एक बार फिर यमुना के किनारे देख
चलिए साहब बारिश के बहाने इतना कुछ हो गया मगर मैंने और आपने क्या किया , भई आप का तो मुझे पता नहीं मगर हाँ मुझे ज़रूर मौका मिल गया इतने दिनों बाद ब्लॉग पर कुछ लिखने का और आपसे मिलने का, और मैं बहुत खुश हूँगर्म चाय का प्याला साथ में कुछ गरमा गरम पकोड़े हैं लैपटॉप के की पैड पर अपने अहसासात को टाइप कर रहा हूँ और गुनगुना रहा हूँ ...तुम से मिले हम , हम से मिले तुम बरसात में.......
नमस्कार, खुदा हाफिज़
गौतम







Saturday, April 24, 2010

सचिन को जन्मदिन की शुभकामनाएं

२४ अप्रैल २०१०, देहरादून
सचिन तेंदुलकर का जन्मदिन है, सचिन जो किसी परिचय के मोहताज नहीं। अपने क्षेत्र में अनगिनत उपलब्धियों को समेटे सचिन, अपने प्रशंसको को इन्सान के रूप में भगवान् से नज़र आते हैं। मैं भी उन अनगिन सचिन प्रशंसको में से एक हूँ। मेरा कथन शायद आपको अतिशयोक्ति लगे, लेकिन आप ही सोचिये जब इस सैंतीस वर्षीय युवक के सामने सुनील गावस्कर जैसा व्यक्ति जो खुद ही क्रिकेट के देवता कहे जाते हैं, नतमस्तक हो जाएँ उनका स्वागत उनके पैरों में लेटकर करें, तो कुछ तो ख़ास होगा ऐसे इंसान में। खैर सचिन ने जो क्रिकेट में प्राप्त किया वो अलग बात है, मगर उस सबको पा लेने के बाद सचिन जिस तरह के इंसान बनकर उभरे हैं, उसने उन्हें वास्तव में अपनी श्रेणी का अलग व्यक्तित्व प्रदान किया है। जिस सादगी के साथ सचिन व्यवहार करते हैं, वो किसी को भी सचिन फैन बना सकता है।
सचिन तुम्हें सलाम और ढेरों बधाईयाँ ।
आज एक कविता के साथ आपसे विदा लेता हूँ, जो काफी पहले लिखी थी अपने अनुज मुकेश के लिए...

है
पड़ाव ये मंजिल नहीं
अवलोकन कर इस से कुछ हासिल नहीं
लक्षित पथ पर छाँव मिले, धूप मिले
गहन तम हो या फिर दीप जले
मंजिल से पहले रुकना नहीं
मंजिल से पहले थकना नहीं
लक्ष्य जब तू पा जायेगा
हर सुख स्वत: मिल जायेगा
स्वेद स्वर्ण बन दमकेगा
सुबह का सूरज फिर चमकेगा
छोड़ पड़ाव इस से कुछ हासिल नहीं
शुभरात्रि ।
...............................................................गौतम

Thursday, April 15, 2010

आस्था का आई पी एल

जकल क्रिकेट के आई पी एल का बड़ा शोर है। आई पी एल यानि इंडियन प्रीमीयर लीग। करोड़ों के दांव लगे हैं .सचिन, धोनी, युवराज जैसे धुरंधर खिलाडियों की अगुआई में देश विदेश के सैकड़ों खिलाडियों को मनचाही कीमत देकर खरीदा गया है। शाहरुख़, प्रीती, शिल्पा जैसे, बॉलीवुड के मसालेदार तड़के और छोटे-२ कपड़ों में नाचती चीयर गर्ल्स के साथ ललित मोदी ने क्रिकेट की ऐसी इंडियन करी तैयार की है, जिसमें खाने वालों (हम और आप) को भले ही स्वाद न आये मगर खिलाने वालों के वारे न्यारे हो रहे हैं। अरबों में टीवी प्रसारण राइट्स बेचे गए हैं। टीवी वालें भी खूब कमा रहे हैं। छ: गेंदों के ओवर में से सिर्फ पांच गेंदों कामैच ही आप तक पहुँच रहा है, छठी गेंद वक्त तो विज्ञापन की भेंट चढ़ जाता है। सब चलता है, अगर फ्रांसिस एडवर्ड स्मेडली के शब्दों को थोडा बदल दें तो यूँ कह
सकते हैं " all is fare in fun and bazaar"।
मगर क्रिकेट के इस आई पी एल के साथ ही एक और आई पी एल इस वक़्त भारत में हो रहा है। जब बाज़ार के सारे तिकड़म भिड़ाने के बाद, कुछ हज़ार लोगों की भीड़ ही जुटा सकने वाले इस रंगीन समारोह को कुछ लाख लोग ही टीवी पर देख रहे हों, उसी समय इस महान समारोह के लिए बिना किसी प्रायोजक के, बिना किसी प्रचार के करोड़ों लोग एक साथ एक समय इकठ्ठा हो जाते हैं। क्या वज़ह है? जनाब मैं कुम्भ की बात कर रहा हूँ । कुम्भ का मेला परसों ही अपने समापन पर पहुंचा है।कितनी अजीब बात है सैकड़ों वर्षों से लोग इस मेले में जुटते हैं, किस लिए? सिर्फ स्नान के लिए। ये क्या है? ये सिर्फ आस्था है, जो इतने लोगों का विश्वास, इस मेले में बनाये हुए है। इतने लोगों को भीड़ जुटाने के लिए ना ही तो टीवी पर विज्ञापन दिए जाते हैं, न ही फ़िल्मी सितारों को बुलाया जाता है । मगर फिर भी लोगों का सैलाब उमड़ पड़ता है। ये आस्था का आई पी एल है।आस्था ही तो है जो पत्थर को भी भगवान बना देती है। ईश्वर दिखाई नहीं देता मगर हमारी आस्था उसमें बनी हुई है, और जब तक मानव की ईश्वर में आस्था है ये दुनिया यूँ ही चलती रहेगी बेलौस.....हम बेफिक्र जी सकते हैं सिर्फ उसमें आस्था बनाए रखें..
शुभ रात्रि
गौतम









Friday, April 9, 2010

देहरादून , ९ अप्रैल २००९

देखिये मैंने कहा था कि मैं व्यस्त हूँ अप्रैल के बाद आज लिखने का समय निकाल पाया हूँ लेकिन जब सोचता हूँ इतने दिनों में मैनें क्या विशेष किया तो जवाब मिलता है "कुछ ख़ास नहीं " रोज़मर्रा के काम के अलावा कुछ भी तो नहीं, फिर कैसी व्यस्तता ?
आप भी मेरी तरह ही हैं जनाब मैं खूब जानता हूँ आपने पिछले हफ्ते क्या ख़ास किया इसकी एक सूची बनाकर देखिये आप को पता चल जायेगा की आप निट्ठलों से कुछ ही बेहतर हैं
पहले मैं पत्र लिखने का बहुत शौक़ीन था हर हफ्ते दो चार ख़त लिख ही दिया करता था मगर अब तो मानो वक़्त ही नहीं मिलता मेरे पास आज भी ढेरों पत्र पड़े हैं मेरे मित्रों और रिश्तेदारों के, आज भी कभी- उनको पढता हूँ, अच्छा लगता है जब से मोबाइल आया है दूरियां मानो बढ़ गई हैं , जी आपने ठीक पढ़ा , दूरियां बढ़ी हैं, घटी नहीं यकीं हो तो अपने अतीत को थोडा सा टटोल कर देखिये जिन लोगों को आप बड़े चाव से, बहुत ही दुलार से पत्र लिखा करते थेउनके हाल मालूम करने के लिए बेचैन रहते थे, दिनों-हफ़्तों इंतज़ार करते थे उनके पत्रों का आज आपके हाथ में हर वक़्त मोबाइल है , मगर क्या आप उन्हें एक काल कर उनकी खैर खबर लेते हैंशायद आप उनके फ़ोन का इंतज़ार भी नहीं करते क्यूंकि आपके पास वक़्त ही कहाँ है हम जाने-अनजाने एक दूसरे से दूर होते जा रहे हैं हमेशा यही सोचकर टाल दिया करते हैं कि कल फुर्सत से बात करेंगेमगर वो फुर्सत जाने कब होगी
मिर्ज़ा ग़ालिब भी शायद फुर्सत को बहुत मिस किया करते थे तभी तो उन्होंने लिखा है
"जी ढूंढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात दिन
बैठे रहें तस्सवुर--जानाँ किए हुए॥
......... मैं फुर्सत को तलाशने की कोशिश करता हूँ और आप भी कीजिएगा
शुभरात्रि
गौतम


Saturday, April 3, 2010

पहली मुलाक़ात

मेरी प्रथम कविता के माध्यम से शायद आप मुझे कुछ जान सके हों... शायद नहीं जान पाएंगे। हाँ, इतना वक़्त किसके पास है कि वो किसी के बारे में, कुछ देर कहीं, बैठ कभी, ये सोच सके कि ये इंसान जिससे वो कुछ क्षण पहले ही मिले हैं, माना सिर्फ कुछ देर के लिए ही सही, कौन है? कैसा है? इंसान जैसा सिर्फ दिखता है या वास्तव में ही इंसान है। हमारे पास फुर्सत ही नहीं है, सच मानिए, अगर हम चन्द लम्हें कहीं से बचा सकते दूसरों के लिए तो यकीन जानिये ये दुनिया इतनी डरी सहमी न होती .... जितनी कि आज हो गई है।
मित्रों मैं सिर्फ आपको नहीं कोस रहा हूँ कि आप मेरे बारे में जानने को क्यूँ उत्सुक नहीं हैं। मैं खुद भी इसी कश्ती का सवार हूँ, तथाकथित तौर पर व्यस्त हूँ, क्यूँ हूँ पता नहीं, ....पर हूँ ज़रूर। पता नहीं कैसे ब्लॉग लिखने का मन हो आया सो लिखने बैठ गया, और आज की इस तकनीक को साधुवाद जिसने लोगों से जुड़ने का अवसर प्रदान किया।
मैंने कोशिश की है कि आप मेरे नाम से मुझे जान सके.... गौतम मेरा नाम है, साधुराम मेरे पिताजी का, और मैं वास्तव में उनका प्रिय रहा, सो मैं हो गया .... गौतम साधुराम प्रिय... आज इतना ही ...
शुभ रात्रि , नमस्कार
गौतम