२ अप्रैल २०११ का दिन इतिहास में दर्ज हो चुका है। धोनी के जियालों ने वही करिश्मा एक बार फिर कर दिखाया है जो कपिल के जाबांजों ने २५ जून १९८३ को किया था। भारत वर्ल्ड कप जीत कर विश्व विजेता बन चुका है, इस अवसर पर शुभकामनायें, दुआएं, बधाइयों और जश्न का दौर जारी है। राजा हो या रंक, नेता हो या अभिनेता हर कोई ख़ुशी से झूम रहा है, सडकों पर नाच गा रहा है। ये क्रिकेट का जुनून है, जो अपने रंजो ग़म को भुलाकर सबको एक कर देता है। और हमारे खिलाड़ी इसीलिए बधाई के पात्र हैं की इन्होने हमें और हमारे जीवन को गर्व करने का एक और लम्हा प्रदान किया है। हम उनको सलाम करते हैं।
जब स्वप्न यथार्थ में परिवर्तित होते हैं तो ईश्वर की भी आँख से आंसू निकल पड़ते हैं। एक ऐसा ही क्षण हमें देखने को मिला जब क्रिकेट के भगवन कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर को उनके साथी खिलाड़ी जीत के बाद कन्धों पर उठाये मैदान के चक्कर लगा रहे थे तो उनकी आँख से बरबस ही आंसू छलक पड़े। २१ वर्षों से यही स्वप्न लिए सचिन तेंदुलकर खेल रहे थे की वो भी विश्व विजेता टीम का हिस्सा बन सके। और टीम का हर सदस्य मानो इस बार जिद पे अड़ा था कि सचिन को वर्ल्ड चैम्पियन बनाना है। हरभजन को जब ये पूछा गया कि आप सब सचिन को कंधो पर उठाये जश्न मना रहे हैं कैसा महसूस करते हैं तो उनका जवाब भाव विह्वल करने वाला था कि सचिन २१ वर्षों से पूरे देश की आशाओं का बोझ अकेले उठा रहे हैं तो इस वक्त उनका बोझ उठाना उनके लिए गौरव कि बात है। युव राज, सहवाग, गंभीर या धोनी सभी ने एक सुर में सचिन को ये जीत समर्पित की है। जिस टीम में समर्पण और एकता कि ऐसी भावना हो उसे भला कौन हरा सकता है। धोनी एंड कंपनी मुबारक हो।
आज जब हर कोई ख़ुशी से सराबोर है तो दिल से बरबस एक ही आवाज़ निकलती है जियो हिंदुस्तान....
नमस्कार, शुभरात्रि
गौतम
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